बंटवारे के जख्म भूले कैसे जा सकते हैं ? आजादी मिली मगर साथ में कभी न मिटने वाले दर्द भी । बुजुर्गों की दास्तान बच्चे याद करते हैं तो दिल रोते हैं और आखें बरसती हैं। विरासत में मिले संघर्ष को सफलता में बदलने का हुनर जो कौम जानती है, वही इतिहास बनाती है। विस्थापन की पीड़ा पंजाबी समाज से ज्यादा किसने सही होगी! आजादी मिली मगर घर छूटे और अपनों का साथ छूटा । चाहते तो बंटवारे के बाद जन्मे पाकिस्तान में भी गुजारा कर सकते थे मगर अपने प्यारे मुल्क हिन्दुस्तान की माटी को ही माथी से लगाया। सब कुछ छोड़कर हिन्दुस्तान आ गए । खून बहे और जानें गंवाईं मगर धरती भारत की अपनाई। आजाद हिन्दुस्तान में हम सब अब 74 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे है। ऐसे पावन अवसर पर हम उस कौम के संघर्ष की कहानी सामने ला रहे हैं, जिसने कुर्बानियों की एक से बढ़कर एक मिसालें पेश की हैं। कौम ऐसी, जिसने संघर्ष से सफलता हासिल करने की हर बार नई कहानी लिखी है। कौमी ऐसी, जिसके हर आंगन में चुनौतियों पर विजय पाकर खुशहाली की नई दास्तान लिखी है। khabarchee.com ऐसी जिंदादिल कौम की हर गुरुवार नई कहानी पेश करेगा। ये इतिहास के अमिट किस्से हैं, जिनको ‘खबरची’ बारी-बारी आपके सामने रखेगा।
14 अगस्त 1947 की तारीख ने पंजाबी समाज को झकझोर कर रख दिया था । मनहूस वक्त देश के बंटवारे का था। हिन्दुस्तान को आजादी मिली मगर इसकी कीमत पंजाबी परिवारों को बड़े नुकसान के रूप में उठानी पड़ी। सब कुछ गंवाने के बाद भी लोगों ने भारत को चुना ।
बंटवारे के वक्त पाकिस्तान में बड़ा खून-खराबा हुआ। संयुक्त भारत का ऐसा बंटवारा हुआ था कि एक ही मुल्क दो हिस्सों में बंट गया था । एक हिन्दुस्तान, दूसरा पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। विभाजन होते ही लोग अपने घर,अपने ही गांव, जिला और अपने मुल्क में परदेशी हो गए। वैसे तो उस वक्त रास्ते खोल दिए गए थे, जो जहां चाहे वहां रहे और जहां चाहे वहां रहने को जाए। बंटवारे की यह नीति सिर्फ कागजों में सिमट गई और जमीन पर इसका बिल्कुल उल्टा हुआ। नए बने पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान से भारत आ रहे लोगों के कत्लेआम किए गए। हिंदुस्तान आ रहीं ट्रेनों को रोककर पाकिस्तान में नरसंहार किए गए। लाखों लोग बेमौत मार दिए गए। कत्लेआम में सबसे ज्यादा नुकसान पंजाबी समाज के लोगों ने उठाया, जो अपना सब कुछ छोड़कर अपने जान से प्यारे हिन्दुस्तान में बसने का प्रण कर चुके थे। उन्हें आजादी तो मिली मगर वे अपने ही प्यारे मुल्क में बसकर भी शरणार्थी बन गए। पाकिस्तान छोड़कर भारत में बसने के बाद ऐसे परिवारों के पास सिवाय संघर्ष के कुछ नहीं था। मकान, संम्पत्ति और धन तो पाकिस्तान में छूट गया था। भारत आने के बाद सबके हाथ खाली थे। दो वक्त की रोटी की भी लाले थे। मगर मेहनत और हिम्मत पर भरोसा करने वाले लोग कभी पीछे मुड़कर नहीं देखते। समय बीतता गया और पंजाबी परिवार अपने मेहनत और लगन से अपने कारवां को आगे बढ़ाते गए। मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के शब्द बंटवारे के दर्द को बयां करने के लिए काफी हैं, जिन्होंने लिखा…
‘ अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ कित्थों क़बरां विच्चों बोल
ते अज्ज किताब-ए-इश्क़ दा कोई अगला वरका फोल
इक रोई सी धी पंजाब दी तू लिख-लिख मारे वैन
अज्ज लक्खां धीयाँ रोंदियाँ तैनू वारिस शाह नु कैन
उठ दर्दमंदां देआ दर्देया उठ तक्क अपना पंजाब
अज्ज बेले लाशां बिछियाँ ते लहू दी भरी चनाब
आज मैं वारिस शाह से कहती हूँ, अपनी क़ब्र से बोल,
और इश्क़ की किताब का कोई नया पन्ना खोल,
पंजाब की एक ही बेटी (हीर) के रोने पर तूने पूरी गाथा लिख डाली थी,
देख, आज पंजाब की लाखों रोती बेटियाँ तुझे बुला रहीं हैं,
उठ! दर्दमंदों को आवाज़ देने वाले! और अपना पंजाब देख,
खेतों में लाशें बिछी हुईं हैं और चेनाब लहू से भरी बहती है ।’
दअरसल, बंटवारे के वक्त पाकिस्तान में निशाने पर वो परिवार थे, जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़कर हिन्दुस्तान के साथ खड़े होने और यहीं बसने का फैसला किया था। नतीजा, ऐसे पंजाबी परिवार आजादी मिलने से पहले ही पाकिस्तानी दंगाइयों और लुटेरी भीड़ के निशाने पर आ गए। हिंसा में जाने कितनी बहनों के सुहाग उजाड़ दिए गए। अनगिनित मांओं ने अपने बेटे खो दिए। दुनिया में आने से पहले ही गर्भ में बच्चे मार दिए गए। पंजाबी समाज के लोगों ने अपनी बर्बादी अपनी आंखों से देखी।
पंजाबी महासभा बरेली ने शहीदों को अर्पित किए श्रद्धा सुमन
बरेली के शहीद पंकज अरोड़ा स्मारक पर पंजाबी महासभा ने 14 अगस्त को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। इस दौराना समाज के सभी लोगों ने उन शहीदों को याद किया, जिन्होंने बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से हिन्दुस्तान आते वक्त न जाने कितने जुल्म सहे। बुजुर्गों ने अपने परिवारों को बचाते हुए अपनी जान गंवा दी। कार्यक्रम में पंजाबी महासभा बरेली के अध्यक्ष संजय आनंद, गुलशन आनंद, देवराज चंडोक, संजीव साहनी, कमल अरोरा, दुष्यंत कोहली, प्रिंस सोढ़ी, शिव मक्कड़, रोहित सभरवाल, संजीव आनंद, हरजीत सिंह, दर्शन लाल भाटिया, अमित अरोरा, हरीश अरोड़ा, मनीष आहूजा, नेहा साहनी, सिम्मी आनंद, तिलक राज जसूजा, मनमोहन सभरवाल, विपिन कोहली, डॉ पुनीत सरपाल, रणजीत सिंह सहित पंजाबी समाज के तमाम लोगों ने लोगों ने शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए।