बरेली। रुहेलखंड के प्रमुुुख समाजवादी नेता एवंं पूूूर्व राज्यसभा सदस्य वीरपाल सिंह यादव ने एक बार फिर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। वह कई दशक बरेली में समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे हैं। नेताजी मुलायम सिंंह यादव के संघर्ष के साथी रहे वीरपाल ने सैफई खानदान में बिखराव के बाद शिवपाल सिंह यादव की राह चुन ली थी। अभी वेे शिवपाल की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में यूपी के मुख्य महासचिव हैं। वीरपाल ने खुलासा किया हैै कुुुछ समाजवादी नेता अखिलेेश-शिवपाल के बीच सुलह की कोशिश में लगे हैं। ये सुलह ही समाजवादी विरासत की सत्ता में वापसी का रास्ता खोलेगी। आगे हालात जैसे भी बनें, वह चुनाव जरूर लड़ेंगे। फिर चाहे मुकाबला किसी से हो। पेश है खबरची की प्रस्तुति ” अथ समाजवादी कथा” खंड-1..
‘ कुछ नहीं…सपा की जड़ों में मट्ठा डालती नजर नजर आएगी ये नौसिखिया बिग्रेेेड ‘
बरेली में समाजवादी पार्टी के लंबे समय तक आधार स्तंभ रहे प्रसपा के यूपी महासचिव वीरपाल सिंंह चुनावी टिकटों के लिए आवेदन को महज सियासी ड्रामा करार देते हैं। कहते हैं कि कॉरपोरेट सैक्टर की तरह कहीं चुनावी दंगल के लिए कागजी आवेदन से नेता तय होते हैं! राजनीति में महत्वाकांक्षा ठीक है मगर अति महत्वाकांक्षा उतनी ही गलत। हमने कभी टिकट केे लिए आवेदन नहीं किया। पार्टी भरोसा करती थी तो हमें टिकट देती थी। बरेली से रिपोर्ट जाती थी और लखनऊ से उम्मीदवारों के नाम पर हर हाल में मुहर लगती थी। 2017 में जब पार्टी हाईकमान के स्तर पर भारी उठापटक थी, तब भी हमें बुलाकर टिकट दिया गया था। अब सपा में जो कुछ होता दिख रहा है, इसके साइड इफेक्ट चुनाव में नजर आएंगे। हाईकमान सबकी ताकत जानता है। मुगालते में आकर कुछ युवा चेहरे जहां सेे जी चाहा वहां से टिकट के लिए आवेदन कर रहे हैं। कल जब ये सबके सब बे-टिकट होंगे, तो यही सब पार्टी और उसके उम्मीदवारों की जड़ों में मट़ठा डालने का काम करेंगे। वैसे भी बरेली में सपा संगठन के खाने-खराब हैं। ऐसा भी क्या संगठन, जिसे न राजनैतिक समझ हो और न उसकी कोई सुनता हो।
‘समाजवादी मंच से यादव गायब होंगे तो क्या अच्छा मैसेज जाएगा’
अखिलेश यादव के बरेली दौरे के दौरान जिले के प्रमुख यादव नेताओं की मंच पर अनदेखी की चर्चाओं को लेकर वीरपाल सिंंह बोले, समाजवादी कुनबे में ये सब ठीक नहीं हो रहा। नए चेहरों को संगठन व दल से जोड़ा जाना ठीक है मगर पुराने बफादार लोगों की कद्र भी करनी चाहिए। सपा प्रमुख अखिलेश यादव की होटल में प्रेस कांफ्रेंस के दौराना उनके अगल-बगल बरेली का एक भी यादव नेता दिखाई दिया हो तो बताएं। यादव क्या, मुस्लिम नेताओं को भी उनकी वरिष्ठता व कद के हिसाब से मंच पर चढ़ने का मौका नहीं दिया गया। जिले के एक प्रमुख समाजवादी नेता ने हमें फोन कर कहा कि अखिलेश के दौरे की दो शब्द में मीमांशा करके बताएं। हमने उनसे दो टूक कह दिया कि इस तरह के दौरे दल की ताकत बढ़ाते हैं मगर सपा के साथ उल्टा होता दिखाई दे रहा है। अब तो अपने भी कोप भवन में बैठे हैं मगर संगठन को कुछ भी नहीं दिख रहा।
‘ सपा-प्रसपा के मिलन के सवाल पर हमारे घर अब भी घनघना रहे नेताओं के फोन ‘
वीरपाल सिंह यादव की गिनती ऐसे समाजवादी नेताओं में होती है, जिन पर सपा संरक्षक मुलायम सिंंह यादव आंख बंद कर भरोसा करते हैं। समाजवादी पार्टी के उदय से उत्थान तक वीरपाल इसका हिस्सा रहे। यह बात अलग है कि अब वह मुलायम सिंह के अनुज शिवपाल सिंह यादव की प्रसपा के यूपी में टॉप-5 नेताओं में से एक हैं। टीम खबरची से बातचीत में वीरपाल सिंह ने कहा बिखराव किसी भी परिवार की खुशहाली के लिए ठीक नहीं होता। समाजवादी घराने में बिघटन के साइड इफेक्ट हैं। सपा ने बसपा से हाथ मिलाया। मगर इस गठजोड़ का फायदा बसपा ने उठाया। सैफई परिवार के कई चेहरे चुनाव हार गए और खत्म होने के कगार तक पहुंचती दिख रही बसपा फिर अपने अंदर ताकत महसूस करने लगी।
‘ राजनीति में मिलन और विदाई रोज की बात, सपा-प्रसपा में ऐका का प्रयास जारी ‘
इस सवाल पर वीरपाल बोले, राजनीति में मिलन और विदाई हमेशा होती रहती है। फिर यहांं तो सब अपने हैं। कुछ ही दिन पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी पूर्व मंत्री का हमारे पास फोन आया था। कह रहे थे..कुछ करिए वीरपाल जी, ऐसे तो सब गड़बड़ हो जाएगा। हमनेे उनसे भी यही कहा अभी चुनाव दूर हैं। खून के रिश्ते हैं। दूरियां कब नजदीकियां बन जाएं, कहा नहीं जा सकता। रही बात अभी प्रसपा की तो चुनावी तैयारी इधर भी जोरशोर से चल रही है। हम भी विधानसभा चुनाव-2022 के लिए हर तरह से तैयार हैं। वीरपाल ने बताया कि सपा कैंप में शामिल प्रमुुुुख नेेेता उनको अक्सर फोन करते रहते हैं। पिछले दिनों अखिलेश यादव केे बरेली दौरेे सेे पहले इंतजाम संभाल रहेे एक नेता ने फोन किया था। शायद दलीय बंदिश रही होगी जो बरेली आने के बाद दिल से चाहकर मिलने नहीं आ सके।
‘ उस वक्त अखा में भाजपा वालों ने गोली न चलाई होती तो नतीजा कुछ और होता’
वीरपाल ने इसे लेकर कहा कि ये गठबंधन आगे बना तो उलटफेर कराने की ताकत रखेगा। बिहार में क्या हुआ ? अकेले ओवेसी ने राजद का खेल बिगाड़ दिया। चुनावी राजनीति में छोटे दल बड़ा काम करते हैं। यूपी का ऐसा कोई जिला नहीं जहां प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का संगठन न हो। शहर से देहात तक हमारे लोग संघर्ष कर रहे हैं। बरेली में हर सीट पर प्रसपा के खिलाड़ी चुनावी होमवर्क में जुटे हैं। हम खुद बिथरी विधानसभा सीट से तीसरी बार चुनावी लड़ने का मन बना चुके हैं। हालात और समीकरण पर नजर है और इसी हिसाब से रणनीति बना रहे हैं। इससे हम पर कोई असर नहीं पड़ने वाला कि चुनावी दंगल में और कौन-कौन होगा। दो बार पहले भी विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। 2002 में भाजपा के दबंगों ने कश्यप बहुल ढका में गोली न चलवाई होती तो कहानी कुछ और होती। 2017 में सपा को पूरे राज्य में नुकसान हुआ, इसका असर बिथरी पर भी पड़ा। चुनाव में हमारी दमखम सबने देखी है। यह बात अलग है कि हम खुद अभी तक विधानसभा चुनाव नहीं जीत सके हैं मगर इसी जिले में कितने ही चेहरे हैं जो हमारी प्लानिंग पर आगे बढ़े और जीतकर सदन में पहुंचे।
विपक्ष के बिखराव से सरकार बेकाबू और बेपरवाह, देश अब पूंजीवाद की राह पर
जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया के नीति व सिद्धान्ताेें की चर्चा करते हुए वीरपाल हाथ में मुंशी प्रेमचंद्र रचित पूंंजीवाद के साथ जनसंघर्ष व बदलाव की गाथा रंगभूमि उपन्यास को दिखाते हैं। कहते हैं रंगभूमि में भी एक पात्र हमारा नामधारी शामिल था। हम हारने मानने वालों में नही हैं। 1977 में इमरजेंसी देखी। अब उससे भी बुरे हाल में देश को देख रहे हैं। जो किसान देश को रोटी खिलाता है, उसे रोकने के लिए राजधानी दिल्ली में भारत-पाकिस्तान सीमा जैसी कंटीले तारों की बाड़ देख रहे हैं। और बिखरे हुए विपक्ष की हालत ऐसी है कि उससे सरकार के खिलाफ संयुक्त संघर्ष की इबारत ही नहींं लिखी जा रही। सरकार जब बेकाबू व बेपरवाह हो जाती है तो उसे विपक्ष ही पटरी पर लाता है। इंदिरा गांधी राज में भी ऐसे ही हालात थे मगर तब संपूर्ण क्रांति के नारे के साथ जयप्रकाश नारायण ने बदलाव की कहानी लिख दी थी। उस आंदोलन ने देश को कई ऐसे नेता दिए, जिन्होंने कई दशक राष्ट्रीय राजनीति को दिशा दी। राम मनोहर लोहिया के समय नवोदित नेताजी मुलायम सिंह यादव का संघर्ष किसी से छिपा थोडेे ही है। मगर अब न वैसे राजनैतिक आंदोलन दिख रहे हैं और न लालू, शरद व नेताजी मुलायम सिंह जैसे संघर्षी चेहरे। मोदी-शाह की सरकार इसीलिए सबको नजरंदाज कर मनमानी कर रही है। अन्नदाता किसानों पर जुल्म कर रही है और एक के बाद एक गैस, तेल, एयरपोर्ट, रेल और यहां तक कि अनाज सब अड़ानी-अंबानी जैसे धनकुबेरों के हवाले करती जा रही है। विपक्ष में अगर अब भी ऐका नहीं हुुुआ तो हालात और भी भयावह होना तय हैं।
‘ अथ समाजवादी कथा के प्रथम अध्याय में हमारे सियासी किरदार हैं रुहेलखंड के प्रमुख समाजवादी नेता वीरपाल सिंंह यादव। वही वीरपाल सिंह जो तीन दशक बरेली में समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे। वही वीरपाल सिंंह जिनके एक इशारे पर बड़े से बड़े अधिकारी और नेताओं की काफिले सुदूर-देहात में बसे उनके गांव की ओर दौड़तेे नजर आतेे थे। वीरपाल सिंह रणनीति बनाते थे और उनके भाई-भतीजे, बहू सब प्रधानी, जिला पंचायत, ब्लाक प्रमुखी के चुनाव चुटकियों में जीत जाते थे। वीरपाल सिंह विधानसभा-लोकसभा चुनाव में जिसका चाहा उसका टिकट बरेली में बैठेेे-बैठे तय कर देते थे और हाईकमान बगैर सोचे-समझे उन पर मुहर लगाने का काम करता था। वीरपाल खुद भी पहले सन्हा और फिर बिथरी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ेे। बेहद कांट-छांट की राजनीति वाले इस इलाके के चुनावी दंगल में वह जीत की दहलीज तक तो नहीं पहुंच सके मगर इससे समाजवादी कैंप में उनके कद और पद कोई प्रभाव नहीं पड़ा। नेताजी मुलायम सिंह यादव ने उनके संघर्ष और बफादारी का इनाम राज्यसभा में भेजकर बखूबी दिया था। वीरपाल भले अब अखिलेश यादव की सपा से दूर उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव की प्रसपा में हैं मगर समाजवादी कैंप की कोई भी चर्चा बगैर वीरपाल का नाम लिए कभी पूरी नहीं होती नजर आती। कल के समाजवादी वीरपाल आज के प्रगतिशील समाजवादी हैं। देखना ये है कि उनकी प्रगतिशीलता आगे के सियासी सफर में उनको कहां लेकर जाती हैं….।’