बरेली। यूपी की सत्ता में वापसी के ख्वाब देख रही समाजवादी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती नेताओं में गुटबंदी के रूप में सामने आ रही है। यह जानते हुए भी अबकी बार विधानसभा के टिकट सीधे-सीधे पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की कलम से तय होने जा रहे हैं, धड़ेबंदी में उलझे नेता इधर-उधर की परिक्रमा कर रहे हैं और अपने-अपने इलाकों में मनमर्जी पॉलटिकल शो करने में जुटे हैं। रुहेलखंड की धुरी कहे जाने वाले बरेली जिले के हालात ऐसे हैं कि यहां की समाजवादी कहानी विधानसभा चुनाव से पहले सीधे-सीधे दो फाड़ विघटन में जकड़ी दिखाई दे रही है।
पिछले विधानसभा चुनाव में रुहेलखंड के अंदर समाजवादी की पार्टी की लुटिया सबसे बुरी तरह बरेली जिले में ही डूबी थी। बदायूं और शाहजहांपुर में पार्टी खाता खोलने में तो कामयाब रही थी मगर बरेली में उसका डिब्बा पूर तरह गोल हो गया था। बरेली की सभी 9 विधानसभा सीटों पर भाजपाई लड़ाकों के सामने समाजवादी प्रत्याशी बुरी तरह चुनाव हारे थे। ऐसा फिर से न हो, इसके लिए समाजवादी हाईकमान फूंक-फूंककर कदम रख रहा है और ज्यादातर सीटों पर जिताऊ-टिकाऊ, युवा और उत्साही चेहरों की तलाश में है।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि बरेली एक नवाबगंज सीट को छोड़ दिया जाए, बाकी सभी 8 विधानसभा क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी हाईकमान नए उम्मीदवारों की तलाश में है। 2017 का चुनाव सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ा था। उस वक्त बरेली शहर, बरेली कैंट और मीरगंज सीटें गठजोड़ कोटे से कांग्रेस के खाते में गई थीं। कांग्रेस उम्मीदवारों ने तीनों ही सीटों पर उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया था मगर कुछ बसपा उम्मीदवार उनकी राह का रोड़ा बन गए थे।
अबकी कहानी बिल्कुल उलट दिखाई दे रही है। पिछले चुनाव में जो उम्मीदवार बसपाई वीर बनकर सपा को रोकने में लगे रहे, वे टिकट की जुगत में साइकिल की सवारी कर रहे हैं। पिछले चुनाव में मीरगंज से बसपा उम्मीदवार रहे सुल्तान बेग मायावती की पार्टी की हालत खस्ता देखकर सपा में कूद पड़े हैं। भोजीपुरा से बसपा प्रत्याशी रहे सुलेमान बेग अभी कहां है, सियासी हलकों में कोई नहीं जानता। 2017 में बरेली शहर से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़े और बूथों से अपने तंबू गायब देखकर आधे दिन में ही घर जा बैठे इंजीनियर अनीस अब शहर छोड़ कैंट से समाजवादी पार्टी में टिकट के लिए धमाचौकड़ी मचा रहे हैं। आंवला से सपा उम्मीदवार रहे सिद्धराज सिंह अपने पिता पूर्व सांसद कुंवर सर्वराज सिंह के साथ पिछले लोकसभा चुनाव में ही साइकिल से उतरकर कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं। आंवला से बसपा उम्मीदवार रहे अगम मौर्या भी अब सपा में हैं और जिला संगठन की कमान संभाल रहे हैं। बहेड़ी से बसपा के प्रत्याशी रहे नसीम अहमद भी टिकट के लिए सपा में एंट्री कर चुके हैं। फरीदपुर में सपा उम्मीदवार रहे पूर्व विधायक डॉ. सियाराम सागर अब इस दुनिया में नहीं हैं। ऐसे में टिकट की जुगाड़ के लिए बसपा के पूर्व विधायक रहे विजयपाल सिंह चुपके से समाजवादी कैंप में दाखिल हो चुके हैं।
बसपा के बुरे दिन देखकर सपा में प्रकट हुए नेता अब खांटी समाजवादियों को पीछे धकेलकर सपा की टिकट हथियाने के लिए हर तरह की जोड़तोड़ कर रहे हैं। एक-दो दिन में ही बदायूं के एक नेता को अपने पॉलटिकल शो में बुलाने की तैयारी कर रहे एक पुराने बसपाई नेता तो कथित रूप से क्षेत्र में लोगों से ये तक कहकर कार्यक्रम में आने का न्यौता दे रहे हैं कि कि उनकी टिकट का ऐलान अब बस होने ही जा रहा है। आज के सपाई और कल के बसपाई चेहरे कुछ दिन पहले बरेली में ऐसा जातीय कार्यक्रम भी कर चुके हैं, जिसमें बिरादरी के मंच पर ज्यादातर गैर बिरादरी नेता ही फोटो खिंचाते दिखे थे। समाजवादी कुनबे में ये चर्चा सरेआम हो रही है कि ऐसे कार्यक्रम पार्टी लाइन में नहीं आते और उसके पीछे पूरा खेल धड़ेबंदी का होता है। ऐसा न होता तो कार्यक्रम में जिले के सभी समाजवादी नेताओं को आमंत्रित किया जाना चाहिए था मगर लॉबिंग के चलते ये जानबूझकर नहीं किया गया।
विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि सपा हाईकमान ने विधानसभा सीटों पर टिकट के दावेदारों से आवेदन तो मांगे हैं मगर अभी फैसला प्रदेश की किसी भी सीट पर नहीं लिया है। सबसे ज्यादा खास बात ये है कि अखिलेश यादव ने दूसरी पार्टियों से आए जितने भी नेताओं को सपा ज्वाइन कराई है, उनमें से किसी से भी टिकट का कमिटमेंट नहीं किया है।अखिलेश हर बार की मुलाकात में नेताओं को पार्टी के लिए काम करने की नसीहत दे रहे हैं। हैरानी इस बात की है कि अखिलेश के इस रुख के बाद भी पार्टी को मजबूत करने की जगह नेता सब काम छोड़कर ‘टिकट परिक्रमा’में लगे हैं और इसके लिए किसी भी बड़े नेता के दरबार में चक्कर लगाने से पीछे नहीं हट रहे।
वैसे सपा में इस बार कहानी बिल्कुल अलग है। सपा के सुप्रीमो अब अखिलेश यादव हैं और पार्टी में वह पहले की जोड़तोड़ व अप्रोच के किस्से-कहानियों से सबक लेकर सभी फैसले बेहद सतर्क होकर खुद ले रहे हैं। अखिलेश यादव को करीब से जानने वाले पुराने समाजवादी बताते हैं कि पार्टी मुखिया सिफारिशों के दम पर किसी को टिकट देने नहीं जा रहे हैं। जिसमें दम दिखेगा, उसका टिकट होगा। लाेकल स्तर पर कोई कितना भी दावा करे और टिकट के लिए बदायूं-दिल्ली की दौड़ लगाए मगर समाजवादी पार्टी में इस बार हर उम्मीदवार लखनऊ से तय होगा। वह भी सिर्फ-सिर्फ सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की कलम से !
खबरची ब्यूरो