बरेली। विधानसभा चुनाव से चार महीना पहले प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री बनाए गए बहेड़ी विधायक के सामने कम समय में कुछ कर दिखाने की बड़ी चुनौती है। एक ओर जहां उनकी ही कुर्मी बिरादरी कई युवा दावेदार बहेड़ी से चुनावी दौड़ में शामिल नजर आ रहे हैं, दूसरा कई कारणों से क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी देखने को मिल रही है। छत्रपाल को न सिर्फ बहेड़ी में विरोध की इबारत को अपने काम से मिटाना है, वहीं इकलौते मंत्री होने के कारण चुनाव में जिला बरेली और पीलीभीत में भी पार्टी की नैया पार लगाना है !
यूपी में विधानसभा चुनाव मार्च 2022 में संभावित हैं और फरवरी में चुनावी तारीखों के ऐलान के साथ ही अभी के मंत्रियों का पद-प्रभाव खत्म होने की संभावना है। ऐसे में योगी कैबिनेट विस्तार के साथ लालबत्ती हासिल करने वाले विधायकों का मंत्री पद महज तीन महीने का माना जा रहा है। मंत्री विहीन चल रही कुर्मी बैल्ट बरेली को छत्रपाल गंगवार के रूप में तीन महीने का मंत्री पद देकर सत्तारूढ़ भाजपा ने गंगवार वोटों में पैठ बढ़ाने की कोशिश की है। हालांकि, विपक्षी नेता बरेली को मिले मंत्री इकलौते मंत्री पद को 90 दिन का झुनझुना बता रहे हैं।
राज्य की योगी सरकार में एक दिन पहले ही मंत्री बने छत्रपाल गंगवार बरेली की जिस बहेड़ी विधानसभा सीट से विधायक हैं, वह पीलीभीत संसदीय सीट का हिस्सा है। गौर करने वाली बात ये है कि योगी सरकार बनने के बाद से अब तक पीलीभीत को मंत्री पद नसीब ही नहीं हुआ है। वहीं, बरेली में पहले तीन केन्द्र और यूपी सरकार में मंत्री थे तो अब इकलौते बहेड़ी विधायक लालबत्ती धारी है और वह भी राज्यमंत्री के रूप में। भाजपा के लिए पिछले चुनाव में संतोष की बात ये रही थी कि बरेली और पीलीभीत की सभी 13 विधानसभा सीटों पर उसका कब्जा हुआ था। कुर्मी बहुल दोनों जिलों में फिर जीत की वही कहानी लिखने की इकलौते मंत्री छत्रपाल गंगवार के लिए चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
कुछ माह पहले केन्द्रीय मंत्रिमंडल से बरेली सांसद संतोष गंगवार की असमय विदाई के बाद बरेली का प्रभाव लखनऊ-दिल्ली में शून्य सा दिखाई दे रहा था। एक वक्त ऐसा भी था, जब बरेली के खाते में तीन-तीन मंत्रियों की ताकत हुआ करती थी। एक ओर बरेली कैंट विधायक राजेश अग्रवाल यूपी में वित्त और आंवला विधायक धर्मपाल सिंह सिंचाई जैसे अहम विभाग संभालते नजर आते थे। राज्य सरकार में जहां मंत्री के रूप में राजेश और धर्मपाल का रुतबा था, वहीं केन्द्र की मोदी सरकार में बरेली सांसद संतोष गंगवार की मंत्री के रूप में धाक देखी जाती थी।
इसके बाद केन्द्र और राज्य सरकार में बरेली की हैसियत घटती चली गई। पहले भाजपा हाईकमान ने राज्य की योगी सरकार में मंत्री राजेश अग्रवाल और धर्मपाल का पत्ता साफ किया और उसके बाद केन्द्र में संतोष गंगवार का भी इस्तीफा हो गया। बरेली को मंत्री विहीन करने के बाद भाजपा आला कमान ने कैंट विधायक राजेश अग्रवाल को संगठन में तबज्जो देकर राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष जरूर बना दिया मगर इससे जिले में पार्टी की सियासी चमक नहीं बढ़ती महसूस की जा रही थी।
दूसरी ओर बरेली के पड़ोसी बदायूं जिले के कोटे से बीएल वर्मा केन्द्रीय राज्य मंत्री और विधायक महेश गुप्ता योगी सरकार में राज्य मंत्री पद संभाल रहे थे। शाहजहांपुर -विधायक सुरेश खन्ना भी टॉप-5 मंत्रियों में से एक के रूप में अपनी ताकत दिखा रहे थे। वहीं, रुहेलखंड की धुरी कही जाने वाले बरेली में भाजपाई सरकार से जिले का बिल्कुल पत्ता कटने के बाद मायूस नजर आ रहे थे। बरेलियंस की इस मायूसी को भाजपाई हाईकमान भी बखूबी भांव रहा था।
नाम न छापे जाने की शर्म पर कुछ भाजपा नेताओं ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार में बरेली का एक भी मंत्री न होने के साइड इफेक्ट कुछ महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव में नजर आ सकते थे। विपक्ष बरेली की हालत को मुददा बनाने की कोशिश कर सकता था। असेंबली इलेक्शन से कुछ महीना पहले ही सही, बरेली कोटे से बहेड़ी विधायक छत्रपाल गंगवार को मंत्री बनाए जाने से कार्यकर्ताओं में जोश बढ़ेगा। दो-तीन महीने के लिए ही सही, योगी सरकार में मंत्री बनने से विधायक कद जरूर बढ़ेगा।
मूल रूप से बरेली के गांव दमखोदा के रहने वाले छत्रपाल गंगवार बहेड़ी से दूसरी बार विधायक हैं। पेशे शिक्षक रहे छत्रपाल पहली बार 2007 में सपा के अताउर रहमान को हराकर एमएलए निर्वाचित हुए थे। 2012 के चुनाव में वह अताउर से महज 18 वोटों से शिकस्त खा बैठे थे। इसके बाद 2018 असेंबली इलेक्शन में छत्रपाल दूसरी बार बाजी मारने में कामयाब हुए थे। उन्होंने बसपा के नसीम अहमद को पराजित किया था और सपा के अताउर रहमान तीसरे नंबर पर रहे थे। बरेली जिले की मुस्लिम और गंगवार बहुल बहेड़ी विधानसभा पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। छत्रपाल गंगवार को मंत्री पद देकर भाजपा ने तराई की गंगवार बैल्ट को खास मैसेज देने की कोशिश की है। हालांकि, मंत्री के रूप में फिलहाल छत्रपाल गंगवार के सामने अपने इस कार्यकाल में आखिरी बचे 3 महीने नवंबर, दिसंबर और जनवरी में कमाल करने की बड़ी चुनौती है।
खबरची: अनूप गुप्ता, दुर्गेश मौर्या, शकील अंसारी