मेरठ/गाजियाबाद। समय के स्याह पन्नों से फूटी ये कहानी किसी को भी द्रवित कर सकती है। बड़ी खबर ये है कि गाजियाबाद में हुुुई अनहोनी के बाद बरसों से सरकारी बाल गृह में रहने को मजबूर बच्चों को उनका खोया परिवार मिल गया है। लंबी कोशिशों के बाद मेरठ बाल कल्याण समिति ने मासूमों का घर खोज निकाला। जिसके बाद दो बच्चेे घर पहुुंच गए हैं। दो बेेेेटियां अब भी रामपुर और लखनऊ केे राजकीय बालिका गृह में हैं। उन दोनों को भी परिवार के पास भेजने की कार्रवाई शुरू री चुकी हैैै। पढ़ें पूूूूरी कहानी…।
बाल कल्याण समिति के मुताबिक, मूलरूप से अलीगढ़ जिले में दादों थाना क्षेत्र के एक गांव के रहने वाले परिवार के साथ 31 जनवरी 2012 को गाजियाबाद में रहते हुए त्रासदी हुई थी। परिवार उस समय गाजियाबाद में थाना कविनगर की समतल बिहार कॉलोनी-2, लालकुआं में रहता था। बच्चों का पिता पेंटर था। अचानक रहस्यमय तरीके से हुए हादसे में बच्चों की मां की मौत हो गई। मकान मालिक जगन्नाथ ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि किराए पर रहने वाले पेंटर ने अपनी पत्नी की ईंट मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने आरोपी पति को तुरंत अरेस्ट कर लिया और गैर इरादतन हत्या के मामले में अगले दिन गाजियाबाद की डासना जेल भेज दिया। पत्नी की मौत हो गई और पिता उसकी हत्या के आरोप में जेल चला गया। घर में रह गए पांच बच्चे, जिनमें बड़ा बेटा उस समय करीब 10 साल का, उससे छोटा 4, उससे छोटी बेटी 3, उससे छोटा बेटा डेढ़ साल और सबसे छोटी की उम्र महज दो माह। गाजियाबाद में परिवार न कोई परिचित। बच्चों को कौन पालता। ऐसे में पुलिस ने सबको बाल कल्याण CWC गाजियाबाद के समक्ष पेश किया। इसके बाद सभी बच्चों को आशादीप फाउंडेशन के सुपुर्द कर दिया गया।
पिता जेल से चिट्ठियां लिखता रहा, किसी ने उसको बच्चों के बारे में नहीं बताया
पत्नी की हत्या के आरोप में पेंटर डासना जेल से पुलिस, प्रशासन को लगातार पत्र लिखकर बच्चों के बारे में जानकारी देने की गुहार लगाता रहा मगर किसी ने संज्ञान नहीं लिया। पांच बच्चों में सबसे बड़े बेटे को पुलिस ने मां की हत्या में गवाह बनाया और प्रशासन ने मामा की सुपुर्दगी में दे दिया। बाकी चार बच्चों को राजकीय बाल गृह (शिशु) भेज दिया। समय यूं ही आगे बढ़ता रहा। इस बीच 29 मई 2013 को गाजियाबाद कोर्ट ने पत्नी की हत्या के आरोपों से पेंटर को दोषमुक्त कर दिया। जेल से रिहाई के बाद भी पेंटर बच्चों के बारे में जानकारी करने के लिए आला अधिकारियों से लेकर थाने तक सभी जगह चक्कर लगाता रहा मगर उसेे कहीं से भी मदद नहीं मिली।
सरकारी बाल गृहों के कायदे-कानून ऐसे कि आपस में ही बिछुड़ गए 4 भाई-बहन
रामपुर बाल गृह में 10 साल तक के बच्चे ही रखे जाते हैं। 2017 में दूसरे नंबर के बेटे की उम्र 10 साल हो गई तो उसे राजकीय बाल गृह (बालक) मेरठ पहुंचा दिया गया। इसके बाद रामपुर बाल गृह में तीन बच्चे रह गए। बेटी दस साल की हुई तो उसे लखनऊ के बालिका गृह भेज दिया गया। फरवरी 2020 में दूसरे बेटे की उम्र दस साल हुई तो उसे भी मेरठ पहुंचा दिया गया। इस तरह सबसे बड़ा बेटा ननिहाल, उससे छोटे दो बेटों का ठिकाना मेरठ बाल गृह, एक बेटी लखनऊ के बालिका गृह और सबसे छोटी रामपुर बाल गृह में रखे गए। मांं की मौत के समय ये सभी पांच बच्चे साथ थे। इसके बाद वक्त और हालात उनको एक दूसरे से जुदा कर दिया। सभी आपस में बिछुड़ गए।
मेरठ से फूटी उम्मीद की पहली किरण, मुश्किल से मिल सका परिवार का पता
मेरठ के राजकीय बाल गृह में रह रहे दो बच्चों पर बाल कल्याण समिति के सदस्य राजन त्यागी की नजर पड़ी तो उन्होंने केस स्टडी करना शुरू की। उन्होंने बच्चों को उनके परिवार से मिलाने का बीड़ा उठाया मगर बगैर पते-ठिकाने के यह काम आसान नहीं था। राजन त्यागी ने टीम खबरची को बताया कि बच्चों के परिवार के बारे में जानकारी जुटाने को गाजियाबाद के थाना कविनगर पुलिस से संपर्क किया। वहां से उस मकान मालिक का मोबाइल नंबर मिला, जिसने बच्चों के पिता पर उनकी मां की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। मकान मालिक से संपर्क किया गया तो उसने परिवार के मूल पते के बारे में कुछ भी जानकारी होने से इंकार कर दिया। बाल कल्याण समिति ने इसके बाद डासना जेल को पत्र लिखकर बच्चों के पिता के बारे में जानकारी मांगी। जेल प्रशासन ने बताया कि सम्बंधित व्यक्ति तो कोर्ट से दोषमुक्त होने के बाद 2013 में ही छोड़ा जा चुका है।
कोर्ट के आदेश में लिखा मिला पता, तब कहीं अलीगढ़ में हो सका परिवार से संपर्क
बाल कल्याण समिति के सदस्य राजन त्यागी के मुताबिक, जेल से मुकदमे का सेशन ट्रायल नंबर (एसटी नंबर) पता हुआ तो न्यायालय का आदेश जुटाया गया। उसमें पेंटर के बड़े बेटे का अलीगढ़ के गांव का पता लिखा था। अलीगढ़ पुलिस के जरिए गांव में संपर्क किया गया तो मालूम हुआ कि बच्चों ताऊ अलीगढ़ के गांधीपार्क थाना क्षेत्र में रहता है। प्रधान के जरिए ताऊ का नंबर जुटाकर उससे बात की गई। ताऊ से बात हुई तो उनके जरिये बच्चों के पिता से संपर्क स्थापित हो सका। बच्चों के बारे में जानकारी मिली तो पिता की आखों में खुशी आंसू भर आए। सोमवार(आज) कुछ जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद मेरठ बाल गृह में रह रहे दो बेटों को उनके पिता और अन्य परिवारीजनों के हवाले कर दिया गया। इससे पहले उनकी शिनाख्त कराई तो देखते ही पिता और बच्चे एक दूसरे से लिपट गए। देर तक सभी रोते रहे। यह सीन जिसने भी देखा, वह अपने आंसू नहीं रोक पाया। राजन त्यागी ने बताया कि रामपुर और लखनऊ बाल गृह में रह रहीं बेटियों को भी जल्द उनके पिता का साथ मिल जाएगा। इसके लिए भी जरुरी प्रयास शुरू कर दिए गए हैं।
खबरची/ अनुरोध भारद्वाज-अनुज त्यागी