पीलीभीत।बरेली मंडल के पांच क्रय केंद्रों पर करोड़ों के धान खरीद घोटाले में एफसीआई के जिला प्रबंधक ( डीएस) समेत 6 कर्मचारी विजिलेंस की जांच में दोषी पाए गए हैं। सभी के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई है। सीबीआई जांच में सबकी गर्दन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
2017-18 की धान खरीद में एफसीआई के तत्कालीन एरिया मैनेजर केके शांडिल्य ने बरेली के बहेड़ी, फरीदपुर और पीलीभीत के पूरनपुर के कबीर गंज आदि में धान खरीद केंद्र खोले थे। इनके जरिये करीब 5948 मीट्रिक टन धान की खरीद की गई। बहेड़ी की डायमंड राइस मिल, शिवशक्ति राइस मिल और अनमोल राइस मिल पर ठेकेदारों ने साठगांठ की। इसके बाद किसानों से सीधे धान की खरीद नहीं की गई। आढ़तियों और राइस मिल वालों ने अपना रोज का 500 से एक हजार कुंटल धान का स्टाक चढ़ाया।
धान की खरीद हुए बगैर उसकी तुलाई, छनाई, ढुलाई के फर्जी बिल बनाये गये। ठेकेदारों से लेकर मिल वालों ने साठगांठ कर करोड़ों के बिल हजम कर लिये। पूरनपुर में अशोक कुमार, जयवीर सिंह, बरेली में आशीष गुप्ता, प्रदीप कुमार ने फर्जीबाड़ा किया। बिल वसूली के लिये 18 में से 11 गाड़ियोें के फर्जी रजिस्ट्रेशन नंबर कागजों में दिखा दिये, इन गाडियों में स्कूटर मोटर साइकिल भी शामिल थे।
जिला प्रबंधक समेत एफसीआई के सभी छह अधिकारी और कर्मचारी दोषी पाये गये हैं। विभागीय जांच में एफसीआई की विजिलेंस के सीजीएम केएन मलिक की अगुवाई में टीम ने सभी को चार्जशीट दी है। चार्जशीट मिलने के बाद मलाईदार जगहों पर जमे सभी मैनेजर और सेंटर इंचार्ज को आगरा, अलीगढ़, बुलंदशहर जैसे जिलों में बतौर दंडस्वरूप पोस्टिंग दी गई है। सीबीआई जांच में एफसीआई के अधिकारी दोषी पाये जाते है तो उनके वेतन से रिकवरी होगी। भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भी भेजा जा सकता है।
लाखों के कैश के साथ पकड़ा गया था अशोक
एफसीआई के स्थानीय डिपो पर तैनात कर्मचारी अशोक कुमार चार वर्ष पूर्व करीब 10 लाख रुपए की नगदी के साथ पूरनपुर के खमरिया तिराहे पर पकड़ा गया था पूरनपुर पुलिस ने रात भर उसे अभिरक्षा में रखने के बाद छोड़ दिया था और आयकर विभाग के पाले में गेंद को डाल दिया था बाद में इस रकम को आयकर विभाग के आदेश के बाद ही रिलीज किया गया था। इसके बाद एफसीआई ने अशोक कुमार का स्थानांतरण पंजाब प्रांत कर दिया था लेकिन वहां से वह पुनः बरेली वापस लौट आया। बताते हैं कि यह रकम चावल उतार के नाम पर राइस मिल मालिकों से रिश्वत के रूप में वसूली गई थी।