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भूषण लाल गुलाटी : बंटवारे में फौजी अफसर का सब कुछ पाक‍िस्‍तान में छूट गया, उस वक्‍त लगा जैसे नसीबा रूठ गया

बरेली। भारत-पाक‍िस्‍तान व‍िभाजन के जख्‍म आम इंसानों ने ही नहीं, अफसरों ने बहुत झेले। भूषण लाल गुलाटी फौज में अध‍िकारी थे। आजादी से पहले पाक‍िस्‍तान में बड़ी म‍िल्‍क‍ियत थी उनकी। बंटवारा होते ही सब कुछ खत्‍म हो गया। फौजी अध‍िकारी होने के बाद भी वहां से कुछ साथ नहीं ला सके। भारत आने के बाद एक शहर से दूसरे शहर पोस्‍ट‍िंग होती रही। साथ में पर‍िवार भी सफर करता रहा। अब उनके बेटे भूपेन्‍द्र गुलाटी बरेली के प्रमुख कारोबार‍ियों में शुमार होते हैं। पेश है गुलाटी पर‍िवार के संघर्ष की कहानी, खबरची की जुबानी। 

स्‍व.भूषण लाल गुलाटी और उनकी पत्‍नी स्‍व. भागवंती गुलाटी। फाइल फोटो

भूषण लाल गुलाटी के पर‍िवार की ग‍िनती आजादी से पहले बन्‍नू, पाक‍िस्‍तान के अमीर और खुशहाल पर‍िवारों में होती थी। वह आर्मी की एमईएस में एसडीओ के पद पर तैनात थे। सैकेंड वर्ल्‍ड वार में वह व‍िदेश में भी अपनी सेवाएं दे चुके थे। उनके चाचा ब्र‍िट‍िश काल में जज थे। पर‍िवार की दूर-दूर तक धाक थी। भूषण लाल गुलाटी के पुत्र भूपेन्‍द्र गुलाटी जो क‍ि उस समय बहुत छोटे थे, प‍िता की जुबानी सुनी बंटवारे के समय की पूरी कहानी कुछ इस तरह बयां करते हैं।

बरेली के प्रमुख कपड़ा कारोबारी भूपेन्‍द्र गुलाटी और उनकी पत्‍नी सुमन गुलाटी।

बकौल भूपेन्‍द्र गुलाटी, अंग्रेजों ने अचानक भारत-पाक‍िस्‍तान के बीच व‍िभाजन की रेखा खींच दी तो तनाव बहुत बढ़ गया। भारत को आजादी तो 15 अगस्‍त 1947 को म‍िली मगर उससे पहले ही पाक‍िस्‍तान के हालात ब‍िगड़ गए। सांप्रदाय‍िक दंगे शुरू हो गए। भारत आ रहे लोगों पर दंगाई बर्बर तरीके से हमले करने लगे। पाक‍िस्‍तान में हमारा मूल न‍िवास स्‍थान बन्‍नू भी इससे अछूता नहीं था। हालात भांपकर प‍िताजी ने पूरे पर‍िवार को आर्मी कैंप में पहुंचा द‍िया। आजादी के ऐलान से पहले ही हमारा पर‍िवार सेना की कड़ी सुरक्षा में पाक‍िस्‍तान से भारत आ गया। इसके बाद पता लगा क‍ि 10 अगस्‍त को भारत आ रही ट्रेन में दंगाइयों ने हजारों न‍िहत्‍थे लोगों का कत्‍लेआम कर डाला। उसके बाद भी पाक‍िस्‍तान से भारत आने वाले लोगों पर दंगाइयों ने बहुत जुल्‍म क‍िए। पीपों और पोटली में भरकर भारत आ रहे लोगों से पैसा, जेवर, सामान दंगाइयों ने लूट ल‍िया। बच्‍चों और मह‍िलाओं पर भी अत्‍याचार क‍िए गए।

कपड़ा कारोबारी भूपेन्‍द्र गुलाटी के ज्‍येष्‍ठ पुत्र नम‍ित गुलाटी एवं उनका पर‍िवार।

बरेली की प्रमुख कपड़ा कारोबारी फर्म भूपेन्‍द्र एंड कंपनी के माल‍िक भूपेन्‍द्र गुलाटी अब 75 बर्ष के हो चले हैं। बंटवारे के बाद पर‍िवार के संघर्ष की कहानी वह व‍िस्‍तार से सुनाते हैं। उन्‍होंने टीम खबरची को बताया- प‍िता फौजी अध‍िकारी थे। पाक‍िस्‍तान से भारत आने के बाद उनकी पोस्‍ट‍िंग पानागढ़, पश्‍च‍िमी बंगाल में हुई थी। इसके बाद क‍ितने शहर बदले, हमें भी याद नहीं है। सब कुछ पाक‍िस्‍तान में ही छूट जाने की वजह से पर‍िवार की स्‍थ‍ित‍ि ठीक नहीं रही थी। प‍िता के साथ पूरे पर‍िवार ने बहुत सफर क‍िया। श‍िलांग, गुवाहाटी, इलाहाबाद, मथुरा सह‍ित कई जगहों पर प‍िता की पोस्‍ट‍िंग हुई। उनके साथ ही हम सब भी एक शहर से दूसरे शहर मेंं जाते रहे। बरेली में तैनाती के समय ही प‍िताजी ने अच्‍छा माहौल देखकर यहीं बसने का फैसला कर ल‍िया। इलाहाबाद से हाईस्‍कूल करने के बाद हमने बरेली से 1967 में पॉलीटैक्‍न‍िक क‍िया। उस वक्‍त नौकर‍ियों का भारी अकाल था। बहुत कोश‍िश के बाद भी  सर्व‍िस नहीं म‍िली।

कपड़ा कारोबारी भूपेन्‍द्र गुलाटी के कन‍िष्‍ठ पुत्र सुम‍ित गुलाटी एवं उनका पर‍िवार।

1969 से बरेली में कपड़ा कारोबार शुरू क‍िया। पंजाबी पंजाबी मार्केट में दुकान ली। नया काम था, इसे जमाने के ल‍िए लंबा संघर्ष करना पड़ा मगर मेहनत रंग लाई। फ‍िर भूपेन्‍द्र एंड कंपनी ने गत‍ि पकड़ ली और कुछ ही साल में बरेली की प्रमुख फर्म बनकर सामने आई। भूपेन्‍द्र गुलाटी के दो पुत्र नम‍ित गुलाटी और सुम‍ित गुलाटी अपनी श‍िक्षा पूरी करने के बाद से उनके साथ कारोबार में हाथ बंटा रहे हैं।

भूपेन्‍द्र गुलाटी की बेटी राध‍िका गुलाटी और उनके पत‍ि हरीश रत्रा।

बेटी राध‍िका गुलाटी की शादी हरीश रत्रा के साथ हुई है। वह अपने खुशहाल पर‍िवार के साथ सामाज‍िक कार्यों में व्‍यस्‍त रहती हैं। गुलाटी फैम‍िली ब्रजलोक कालोनी, प्रेमनगर में रहती है। अपनी कारोबारी पहचान के साथ पर‍िवार पंजाबी महासभा के साथ जुड़कर समाज सेवा में भी जुटा नजर आता है। गुलाटी पर‍िवार ने अपनी मेहनत और लगन से बड़ा मुकाम हास‍िल क‍िया है। इनकी कहानी क‍िसी म‍िसाल से कम नहीं।

खबरची/ अजय शर्मा  

 

 

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