बरेली। रुहेलखंड के प्रमुख समाजवादी नेता पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव का परिवार पंचायत चुनाव लड़ता तो जरूर दिखेगा मगर उसमें एकजुटता के रंग शायद ही नजर आएं! पहले परिवार में एका का ही कमाल था जो 39 साल से पंचायत की राजनीति में कोई उनका बर्चस्व नहीं डिगा पाया था। पारिवारिक सूूूत्र बताते हैं कि त्रिकुनिया फैमिली के अंदर अब ऐसी खाई दिख रही है कि वीरपाल के दो सगे भतीजे विनोद यादव और भुवनेश यादव एक दूसरे के खिलाफ प्रधानी का चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं! रिश्तों में बिखराव की कहानी पर दूरदर्शी वीरपाल फिलहाल मौन तो साधे हैं मगर उनके उनके कहेेे-अनकहे एहसास करीबियोंं के बीच साफ महसूस किए जा रहे हैं।
त्रिकुनिया की प्रधानी पर वीरपाल फैमिली का 39 साल से कब्जा
बरेली की समाजवादी राजनीति में दशकों तक वीरपाल का प्रभाव किसी से छिपा नही है। बात सिर्फ पंचायत चुनावों की करें तो अपने इलाके में वीरपाल के आगे बड़े-बड़े महारथियों की चालें बेअसर साबित होती रही हैं। करीब चार दशक पैत्रिक ग्राम पंचायत लहर-त्रिकुनिया की प्रधानी पर वीरपाल के परिवार का कब्जा रहा है। 1982 में उनके परिवार के रामेश्वर सिंह यादव पहली बार एक वोट से प्रधानी का चुनाव जीते थे। उसके बाद परिवार कभी नहीं हारा है। 1995 में वीरपाल सिंह ने अपने भाई रामभाग सिंह यादव को चुनाव जिताया था। उसके बाद रामभाग दो बार निर्विरोध प्रधान बने। अभी भी रामभाग ही गांव के प्रधान हैं।
जिला पंचायत की चुनावी राजनीति में 25 बरस से बर्चस्व कायम
पूर्व सांसद वीरपाल सिंंह यादव खुद अपने इलाके से 1995 में जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए थे। 2000 में उनकी पत्नी शांती देवी यादव चुनाव जीतीं। वीरपाल का ही जलवा था जो 2005 में हुए जिला पंचायत के चुनाव में शांती देवी निर्विरोध काबिज होकर परिवार की ताकत का लोहा मनवाया था। 2010 में वीरपाल ने पत्नी की जगह अपने छोटे भाई रामधुन सिंह यादव का जिला पंचायत चुनाव में झंडा बुलंद कराया था। 2015 के चुनाव में वीरपाल ने चुनावी रणनीति बदलते हुए वार्ड-41 से जिला पंचायत चुनाव में अपने दूसरे छोटे भाई रामकुमार सिंह यादव के बेटे विनोद यादव को उतारा और बड़े अंतराल से जीत भी दिलाई।
2015 में वीरपाल की पुत्रबधू कंचन यादव को मिले थे रिकार्ड वोट
2015 के चुनाव में वीरपाल ने अपने बेटे डॉ. देवेन्द्र यादव की पत्नी कंचन यादव को वार्ड 43 से प्रत्याशी बनाया था।वोटों की गिनती हुई तो वीरपाल के विरोधियों को पसीना आ गया था। कंचन यादव को जिला पंचायत सदस्य चुनाव में अकेले 65 फीसदी से अधिक वोट हासिल हुए थे जो पूरे यूपी में एक रिकार्ड था। कंचन यादव पूर्व विधायक महीपाल सिंंह यादव और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सरोज यादव की बेटी हैं। वीरपाल सिंंह के परिवार की बहू बनने के बाद वह राजनीति में सक्रिय हैं। तब परिवार में बहू और भतीजे को जिला पंचायत सदस्य बनवाए जाने के साथ वीरपाल यादव ने भाई रामभाग सिंंह यादव का लहर-त्रिकुनिया की प्रधानी पर कब्जा बरकरार रखा था। इससे भी बड़ी बात थी कि वीरपाल ने भाई रामधुन यादव के बेटे उमेश यादव को पड़ोस की ग्राम पंचायत झिंंझरी से प्रधान बनवाने में भी सफलता हासिल की थी।
ताऊ साथ थे तो आदेश गुडडू प्रमुख बने, हाथ हटते ही कुर्सी छिनी
2015 के पंचायत चुनाव में वीरपाल के परिवार की कामयाबी की कहानी इससे आगे भी है। वीरपाल के चुनावी रणकौशल से उनके भाई रामभाग सिंंह यादव के बेटे आदेश गुड़डू पहले वीडीसी और बाद में आलमपुर जाफराबाद की ब्लाक प्रमुखी हासिल करने में कामयाब रहे। आदेश इससे पहले भी ब्लाक प्रमुख रहे थे। गुड़डू की मां भी निर्विरोध ब्लाक प्रमुख रहीं मगर उनकी सफलता का पूरा श्रेय वीरपाल सिंंह यादव को भी जाता है। परिवार की राजनैतिक कहानी में इसके बाद मोड़ तब आया, जब कई दशक सपा के जिलाध्यक्ष एवंं राज्यसभा सदस्य रहे वीरपाल ने पार्टी छोड़कर शिवपाल सिंंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली। शिवपाल की टीम प्रसपा में वह यूपी के मुख्य महासचिव हैं। वीरपाल के प्रसपा में जरूर गए मगर यहां से उनके ब्लाक प्रमुख भतीजे आदेश गुडडू ने ताऊ से किनारा कर लिया और खुद सपा में ही रहे। पारिवारिक सूत्र बताते हैं कि आदेश गुडडू के मन में विधायक बनने की महत्वाकांक्षा है, जिसकी वजह से उन्होंने ताऊ के साथ प्रसपा में जाने की जगह सपा में ही अपना भविष्य बेहतर लगा। यहां से ताऊ और भतीजे के बीच दूरियां पैदा हो गई। इसके साइड इफैक्ट भी जल्दी सामने आ गए। आदेश गुडडू विरोधी उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आए। वीरपाल साथ रहते तो बहुत कुछ मैनेज कर लेते। राजनीति के माहिर खिलाड़ी ताऊ से दूरी बनाकर आदेश सियासत में कमजोर पड़ गए और वक्त से पहले उनकी ब्लाक प्रमुखी चली गई।
अब भाई-भाई एक दूसरे के खिलाफ चुनावी दंगल लड़ने को तैयार
त्रिकुनिया फैमिली के करीबी सूत्रों से टीम खबरची को जो जानकारी मिली है, वह हैरान करने वाली है। सूत्र बताते हैं कि वीरपाल सिंह यादव के परिवार में अब एका जैसी बात नहीं नजर आ रही। वीरपाल अपनी बहू कंचन यादव को वार्ड 43 की जगह 41 से जिला पंचायत सदस्य चुनाव लड़ाने जा रहे हैं। पूर्व ब्लाक प्रमुख भतीजे आदेश यादव गुड़डू समाजवादी पार्टी का झंडा हाथ में लेकर बीडीसी चुनाव की तैयारी में है मगर ताऊ वीरपाल उनसे बहुत दूर दिख रहे हैं। वीरपाल के भाई रामभाग सिंंह इस बार अपने बेटे भुवनेश को त्रिकुनिया से प्रधानी का चुनाव लड़ाने के मूड में है तो भुवनेश के खिलाफ वीरपाल के दूसरे भाई रामकुमार यादव के पुत्र व निवर्तमान जिला पंचायत सदस्य विनोद यादव प्रधानी का इलेक्शन लड़ने की तैयारी कर चुके हैं! ऐसा होता है तो वीरपाल के परिवार में चचेरे-तयेेेरे भाई एक दूसरे के खिलाफ चुनावी दंगल में ताल देते नजर आएंगे! परिवार में अंदरखाने चल रही इस दास्तान पर वीरपाल कुछ भी कहने से बच रहे हैं और वह पूरी ताकत से अपने बहू को चुनाव लड़ाने की तैयारी मे लगे हैं।
एक तरफ वीरपाल के भतीजे तो दूसरी ओर वीर सिंंह पाल के भाई
वीरपाल सिंंह यादव जिस त्रिकुनिया गांव से ताल्लुक रखते हैं, वह ग्राम पंचायत लहर का एक मजरा है। पड़ोसी मजरा हिम्मतपुर भी लहर ग्राम पंचायत में लगता है। करीब दो हजार की वोट संख्या वाली इस ग्राम पंचायत में यादव मतदाता सिर्फ 350 के करीब हैं। इसके बाद भी वीरपाल सिंंह यादव के परिवार का पिछले 39 साल से लहर ग्राम पंचायत की प्रधानी पर कब्जा बरकरार है। भाजपा के आंवला जिलाध्यक्ष वीर सिंंह पाल के भाई शिवकुमार इस बार प्रधानी का चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। ऐसा होता है तो समाजवादी नेता पूर्व सांसद के वीरपाल सिंंह यादव के बिखरे-बिखरे से दिख रहे परिवार का प्रधानी के चुनाव में भाजपा जिलाध्यक्ष वीर सिंह पाल के एकजुट परिवार से मुकाबला होगा। उस स्थिति में रिजल्ट क्या रहेगा, इस पर पूरे जिले की निगाहें होंगी।
खबरची/ अनुरोध भारद्वाज